Tuesday, July 28, 2020

लुप्त होती हस्तशिल्प ब्लाॅक प्रिंटिंग की कला को पुर्नजीवित कर रहे हैं ये दंपति


# हैंडलूम और हाथ से की जाने वाली ब्लाॅक प्रिंटिंग की इस मृतप्राय कला को बचाये रखने के लिये रोहित और आरती की जोड़ी ने "आशा" नामक संस्थान की नींव रखी।
 हाथों से होने वाली ब्लाॅक प्रिटिंग और हथकरघे के काम को पुर्नजीवित करने, अधिक से अधिक कलाकारों का साथ देते हुए उन्हें प्रशिक्षित करते हुए महिलाओं को सशक्त करने का काम करते हुए, रोहित और आरती रूसिया ने मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में "आशा" संस्था की नींव रखी। आज के  आधुनिकीकरण के युग में हैंडलूम ब्लाॅक प्रिंटिंग की समृद्ध और पारंपरिक कला अपनी अंतिम सांस ले रही है और लुप्त होने की कगार पर है. मौजूदा समय में एक तरफ जहां मशीन से बने कपड़े और स्क्रीन प्रिंटिंग लोकप्रियता के चरम पर हैं वहीं दूसरी ओर हाथ से कपड़ा बुनने के भरोसे अपना जीवन यापन करने वालों के पास बेहद कम विकल्प बचे हैं. सैंकड़ों साल पहले मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में रहने वाले चिप्पा समुदाय के करीब 300 परिवार इस हाथ से की जाने वाली ब्लाॅक प्रिंटिंग की कला के विशेषज्ञ थे. आज, कला के इस स्वरूप को केवल एक ही परिवार ने, कई संघर्षों का सामना करते हुए, किसी तरह जिंदा रखा है, जिसका नेतृत्व 70 वर्षीय दुर्गालाल कर रहे हैं. हैंडलूम और हाथ से की जाने वाली ब्लाॅक प्रिंटिंग की इस मृतप्राय कला को बचाये रखने के लिये रोहित और आरती रूसिया  पति-पत्नी की जोड़ी ने आशा ऐड एंड सर्वाइवल ऑफ हैंडिक्राफ्ट्स आर्टिसन्स नामक संस्था की नींव रखी.
 कला के इस पारंपरिक स्वरूप में, कारीगर लकड़ी के बने खांचे (मोल्ड) का उपयोग कर कपड़े पर डिजाइन को उत्कीर्ण करते हैं. आशा के सह-संस्थापक रोहित रूसिया बताते हैं कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह एक बेहद थकाऊ और समय लेने वाली प्रक्रिया है. रोहित आगे कहते हैं, ‘‘इस कार्य में लाभ तुलनात्मक रूप से काफी कम होता है क्योंकि उत्पादन की लागत कलाकार को मिलने वाले पारिश्रमिक से काफी अधिक होती है.’’ इसके अलावा इस क्षेत्र में कारखानों और कोयला खदानों के चलते कलाकारों और आस पास के शहरी और ग्रामीण परिवारों पर काफी फर्क पड़ा है. एक तरफ जहां बिजली से चलने वाले कारखानों ने बेहद कम दाम पर वैसा ही कपड़ा उपलब्ध करवाया वहीं दूसरी तरफ कोयला खदानों ने स्थानीय निवासियों के लिये रोजगार के नए अवसर प्रदान कियेहैं. लाभ कम होने के कारण युवाओं का भी हथकरघे की इस विरासत से दूर होना स्वाभाविक है. यही वजह है कि यह परंपरा धीरे-धीरे लुप्त होने के कगार पर पहुंच गई. ‘‘हाथ से होने वाली ब्लाॅक प्रिटिंग हमारी पुस्तैनी  विरासत का हिस्सा है, मुझे ऐसा लगा कि मुझे इस परंपरा और संस्कृति को पुर्नजीवित करने के लिये कुछ करने की जरूरत है; अपनी जड़ों के और करीब आने की.’’ हालांकि रोहित के पास फार्मास्यूटिकल में डिग्री है, लेकिन ब्लाॅक प्रिटिंग हमेशा से ही अन्हें अपनी तरफ आकर्षित करती थी. उनकी स्नातक पत्नी, आरती ने उन्हें उनके जुनून के प्रति कुछ करने के लिये हमेशा प्रोत्साहित किया और समर्थन भी दिया. आखिरकार 2014 में, रोहित और आरती ने ब्लाॅक प्रिंटिंग, हथकरघा, हस्तशिल्प और कला के अन्य स्वरूपों के संरक्षण और प्रचार के क्षेत्र में कुछ करने और साथ ही साथ नए और अधिक कारीगरों को प्रशिक्षित करने के लिये एक मंच को तैयार करने का फैसला किया. ग्रामीण जनजातीय महिलाओं की आशा काॅटन फैब्स ब्रांड नाम के अंतर्गत बेचे जाने वाली आशा, एक ऐसा स्थान है जहां हाथ से ब्लाॅक प्रिंट किये हुए कपड़ों और डिजाइनों के विनिर्माण और बिक्री का काम होता है. छिंदवाड़ा जिले में स्थित उत्पादन इकाई से लेकर हाथ से बुने हुए कपड़े तक, सभी काम सिर्फ महिलाओं द्वारा ही किये जाते हैं. आशा ने प्रमुख रूप से मध्य प्रदेश की ग्रामीण जनजातीय महिलाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करवाने का एक सचेत प्रयास किया है. इसके अलावा इस टीम ने महिलाओं को कला के इस स्वरूप में प्रशिक्षित करने और उन्हें घर से ही काम करने के लिये प्रेरित करने के प्रयास किये हैं. रोहित बेहद गर्व से कहते हैं, ‘‘कटाई, सिलाई से लेकर डिजाइनिंग तक का सारा काम गोंड जनजातीय महिलाओं के द्वारा ही किया जाता है. हमारा मुख्य उद्देश्य अपने कारीगरों और इन महिलाओं को मुख्यधारा में लाना है. महिला सशक्तीकरण हमारे एजेंडे के शीर्ष में है. यहां तक कि इस संगठन की संस्थापक भी एक महिला ही हैं.’’ काॅटन फैब्स द्वारा तैयार किये गए कपड़े और डिजाइन न सिर्फ पूरी तरह से पारंपरिक हैं बल्कि यह स्थानीय स्वाद, कला और संस्कृति के साथ विरासत का एक विशिष्ट मिश्रण भी प्रदान करवाते हैं. 
 भ्रष्टाचार और कलाकारों का बड़े पैमाने पर होने वाला शोषण इस कला और पेशे के पतन के प्रमुख कारण थे. एक तरफ जहां हाथ से कपड़ा बुनने के काम में लगने वाली मेहनत काफी कड़ी होती हैं वहीं दूसरी तरफ इसके बदले मिलने वाला पारिश्रमिक उस मेहनत के मुकाबले बेहद कम होता है. इसके अलावा बिचैलियों की मौजूदगी ने परिस्थितियों को और अधिक कठिन बना दिया था. रोहित बताते हैं कि कोई उत्पाद चाहे तीन रुपये का बिके या फिर पांच रुपये का, कारीगर को मिलता था सिर्फ एक रुपया. ऐसे में, आशा का सूत्र है ‘‘कला-कलाकार-उपभोक्ता’’ और इसी के चलते यह व्यवस्था से बिचैलियों के मकड़जाल को खत्म करने में सफल रही है. काॅटन फैब्स उपभोक्ताओं को सीधे बिक्री करती है जिसके चलते मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा सीधे ग्रामीण कारीगरों के परिवारों के पास जाता है. वर्तमान में आशा 30 परिवारों को रोजगार प्रदान कर रही है. बिक्री को बढ़ाने और वैश्विक बाजार में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने के उद्देश्य से रोहित ने सोशल मीडिया को विपणन के प्रमुख तरीके के रूप में अपनाया है. इनकी उपस्थिति मध्य और दक्षित भारत में है. इस लुप्तप्राय कला के पुनरुद्धार का चुनौतीपूर्ण रास्ता हालांकि चिप्पा समुदाय का एक बड़ा हिस्सा अभी भी इस पेशे से दूरी बनाए रखता है लेकिन फिर भी यह संगठन धीरे-धीरे ही सही राज्य में पहचान और सम्मान प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. बिक्री और मांग में कमी के चलते कई युवा हथकरघा और हस्तशिल्प के मुकाबले शहरी नौकरियों को प्राथमिकता दे रहे हैं. चूंकि मध्य प्रदेश राजस्थान की तरह पर्यटन का केंद्र नहीं है इसलिये बिक्री उतनी अधिक नहीं है. स्क्रीन प्रिंटिड कपड़े और बढ़ती माॅल संस्कृति ने पारंपरिक उपभोक्ता आधार को तोड़ लिया है लेकिन इसके बावजूद ब्लाॅक प्रिंटिंग के विशेषज्ञ हाथ से बुने हुए कपड़े और डिजाइनों के मोल को पहचानते हैं और लगातार इस संगठन के संपर्क में रहते हैं. रोहित को इस बात का अहसास हुआ कि शहरों में रहने वाले कई लोग ग्रामीण आजीविका में अपना योगदान देना चाहते हैं और बदले में प्रमाणिक उत्पाद खरीदने को तैयार हैं. प्रदर्शनी और ट्रेड शो अक्सर महानगरों और शहरी उपभोक्ताओं से जुड़ने का एक माध्यम साबित होते हैं. हालांकि इस संबंध में फंडिग यानी पैसे की व्यवस्था एक प्रमुख समस्या है. चूंकि आशा के पास कोई मूल संगठन नहीं है और यह फिलहाल पूरी तरह से संस्थपकों पर निर्भर है, ऐसे में काॅटन फैब्स की कुछ बजट संबंधी सीमाएं हैं. इसके बावजूद रोहित दिल न छोटा करते हुए कहते हैं, ‘अगर 70 वर्ष की आयु में दुर्गालाल इस कला को जीवित देखना चाहते हैं और कोई कलाकार बिना किसी वित्तीय सहायता के इस परंपरा और संस्कृति के पुनरुत्थान को होते हुए देखना चाहता है, तो यह अपने आप में एक बड़ी बात है और यही हमारे लिये आगे बढ़ने की सबसे बड़ी प्रेरणा है।

Tuesday, July 7, 2020

उत्तर प्रदेश : भूमिगत जल हुआ ज़हर - अनिल सिन्दूर



# 63 जनपदों के भूमिगत जल में फ्लोराइड, 25 जनपदों के भूमिगत जल में आर्सेनिक एवं 18 जनपदों के भूमिगत जल में फ्लोराइड –आर्सेनिक दोनों  मानक से अधिक
# वाटर एण्ड सेनिटेशन मिशन उप्र ने आरटीआई के जबाव में जियोग्राफिकल क्वालिटी टेस्टिंग सर्वे से आई रिपोर्ट की दी  जानकारी
देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के 63 जनपदों के भूमिगत जल में मानक से अधिक फ्लोराइड, 25 जनपदों के भूमिगत जल में आर्सेनिक तथा 18 जनपदों के भूमिगत जल में फ्लोराइड एवं आर्सेनिक दोनों मानक से कई गुना अधिक है. यह खुलासा एक आरटीआई के जबाव में वाटर एण्ड सेनिटेशन मिशन उप्र से हुआ है. पीने के पानी में मानक से अधिक फ्लोराइड तथा आर्सेनिक आने से गंभीर बीमारी के खतरे बढ़ गये हैं. जियोग्राफिकल क्वालिटी टेस्टिंग सर्वे रिपोर्ट की भयावता  को देखते हुये जिस रिपोर्ट को पोर्टल के माध्यम से सार्वजनिक होना था उसे आज तक नहीं किया गया.

            केंद्र सरकार ने पीने के पानी की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुये वर्ष 2015-16 में 150 करोड़ की धनराशि वाटर एण्ड सेनिटेशन मिशन उप्र को दी जिससे वह उप्र के प्रत्येक गांवों, कस्बों एवं शहरों के पीने के पानी के स्रोतों की जियोग्राफिकल क्वालिटी टेस्टिंग सर्वे करवाये और इस रिपोर्ट को पोर्टल के माध्यम से सार्वजानिक करे. केंद्र सरकार ने यह भी आदेश दिया कि इस रिपोर्ट की एक हार्ड तथा सॉफ्ट  कापी जनपदों के जिला विकास अधिकारी को भी दी जाय जिससे वह भी अपने स्तर पर कारगर उपाय कर सकें. वाटर एण्ड सेनिटेशन मिशन उप्र ने दो एजेन्सियों को इस कार्य को सौंपा जिसमें एक ADCC Infocad Pvt. Ltd. Nagpur थी. एजेंसिओं ने अपनी सर्वे रिपोर्ट की हार्ड कॉपी प्रदेश के सभी जनपदों के मुख्य विकास अधिकारी को दी तथा सॉफ्ट कॉपी वाटर एण्ड सेनिटेशन मिशन उप्र को दी. इस सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 63 जनपदों में फ्लोराइड  मानक से अधिक 3 पीपीएम तक है एवं आर्सेनिक 25 जनपदों में मानक से अधिक 1 पीपीएम तक है. जनपदों के विकास अधिकारियों को सर्वे रिपोर्ट का 60 प्रतिशत सत्यापन अपने स्तर पर करवाना था लेकिन अधिकतर जनपदों में यह सर्वे रिपोर्ट आजतक अलमारियों में बन्द है. सर्वे रिपोर्ट को राज्य पेयजल एवं स्वच्छता मिशन को सॉफ्ट कॉपी का उपयोग करते हुये पोर्टल तैयार करना था लेकिन पोर्टल भी तैयार नहीं किया जा सका.

            भारतीय मानक ब्यूरो अनुसार पीने के पानी में फ्लोराइड की वांछनीय मान्य सीमा 1.0 पीपीएम तथा अधिकतम मान्य  सीमा 1.5 पीपीएम तथा आर्सेनिक की मान्य सीमा 0.01 पीपीएम तथा अधिकतम मान्य सीमा 0.05 पीपीएम है. वाटर एण्ड सेनिटेशन मिशन, उप्र ने आरटीआई में जानकारी दी है कि फ्लोराइड से प्रभावित जनपदों अधिक 3 पीपीएम तक है. मानक से अधिक पीने के पानी में फ्लोराइड से घातक रोग फ्लोरोसिस हो जाता है जो दन्त क्षरण, जोड़ों में अकड़न तथा हड्डियों में मुड़ाव ला देता है. इसीतरह पीने के पानी में मानक से अधिकतम आर्सेनिक  1 पीपीएम तक है  आर्सेनिक  त्वचा रोग एवं कैंसर देता है. फ्लोराइड तथा आर्सेनिक प्रभावित बस्तियों में नागरिकों पर पड़े प्रभावों तथा परिणामों का मूल्यांकन मिशन के स्तर से तो कराया ही नहीं गया स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी इस सर्वे रिपोर्ट पर कोई कार्य नहीं किया. आरटीआई से मिली जानकारी की सूचना रजिस्टर्ड डाक द्वारा प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी को भेजी गयी. प्रधानमन्त्री कार्यालय ने इस सूचना को शिकायत मानते हुये मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल पर निस्तारण को प्रेषित कर दी. प्रधानमन्त्री कार्यालय ने सन्दर्भ संख्या PMOPG/D/2019 दिया जबकि मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल पर शिकायत को सन्दर्भ संख्या  6000190107115 दिया गया. प्रधानमन्त्री कार्यालय से भेजी गयी शिकायत को तीन माह बाद बिना समझे, बिना पढ़े ही कानपुर नगर से निस्तारित कर दिया गया. 
    
            नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश की 84 प्रतिशत आबादी को सुरक्षित नलों से घरों तक पानी उपलब्ध नहीं कराया जाता है. पीने का 90 प्रतिशत पानी हेंड पम्प या सबमर्शिबल के माध्यम से जमीन के अन्दर से ही लिया जाता है. अतिदोहन के चलते भूमिगत जलस्तर ख़त्म होने की कगार पर पहुँच गया है जिसके परिणाम स्वरुप पानी में ऐसे तत्व आ रहे हैं जो मानक से अधिक हैं.   
 फ्लोराइड प्रभावित जनपदों की सूची – आगरा, अलीगढ़, अम्बेडकर नगर, अमेठी, औरैया, बागपत, बहराइच, बलरामपुर, बाँदा, बाराबंकी, बिजनौर, बदायूँ , बुलंदशहर, चन्दौली, चित्रकूट, एटा, इटावा, फैज़ाबाद, फर्रुखाबाद, फतेहपुर, फ़िरोज़ाबाद, गौतम बुद्ध नगर, गाज़ियाबाद, गाज़ीपुर, गोंडा, हमीरपुर, हापुड़, हरदोई, जालौन, जौनपुर, झाँसी, ज्योतिबाफुलेनगर, कन्नौज, कानपुर देहात, कानपुर नगर, कासगंज, कौशाम्बी, लखीमपुर खीरी, ललितपुर, लखनऊ, महामायानगर, महाराजगंज, महोबा, मैनपुरी, मथुरा, मेरठ,  मिर्ज़ापुर, मुज़फ्फरनगर, प्रतापगढ़, रायबरेली, रामपुर, सहारनपुर, संभल, संतकबीर नगर, संतरविदास नगर, शाहजहाँपुर, शामली, श्राबस्ती, सीतापुर, सोनभद्र, सुल्तानपुर, उन्नाव तथा  वाराणसी             
आर्सेनिक प्रभावित जनपदों कि सूची – अलीगढ़, आजमगढ़, बहराइच, बलिया, बाराबंकी, देवरिया, फैज़ाबाद, गाज़ीपुर, गोंडा, गोरखपुर, जौनपुर, झाँसी, ज्योतिबाफुलेनगर, कुशीनगर, लखीमपुर खीरी, लखनऊ, महाराजगंज, मथुरा, मिर्ज़ापुर, पीलीभीत,  संतकबीर नगर, शाहजहाँपुर, सिद्धार्थ नगर, सीतापुर तथा  उन्नाव
आर्सेनिक तथा फ्लोराइड दोनों से प्रभावित जनपदों की सूची- अलीगढ़, बहराइच,  बाराबंकी, फैज़ाबाद, गाज़ीपुर, गोंडा, जौनपुर, झाँसी, ज्योतिबाफुलेनगर, लखीमपुर खीरी, लखनऊ, महाराजगंज, मथुरा, मिर्ज़ापुर,  संतकबीर नगर, शाहजहाँपुर,  सीतापुर तथा  उन्नाव
            जल शक्ति मंत्रालय द्वारा आयोजित नेशनल कॉन्फ्रेंस के दौरान उप्र वाटर एण्ड सेनिटेशन प्रमुख सचिव अनुराग श्रीवास्तव ने बताया कि सर्वे रिपोर्ट को अभी पोर्टल पर नहीं डाला जा सका है जल्द ही टेंडर कर सर्वे रिपोर्ट  पोर्टल पर डाली जायेगी जिससे आम आदमी सर्वे रिपोर्ट को देख सकेगा.


Monday, June 29, 2020

उत्तर प्रदेश : करोड़ों की संख्या में पौधरोपण, हरित क्षेत्र में बढ़ोत्तरी सिर्फ 0.01 प्रतिशत - अनिल सिन्दूर



#  भारत वन स्थिति रिपोर्ट (आईएफएसआर) - 2019 की 16वीं रिपोर्ट में खुलासा     
#  भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान देहरादून की टीम ने वृक्षारोपण महाकुम्भ 2019-20 का किया मूल्यांकन एवं निरीक्षण
# वृक्षारोपण महाकुम्भ 2019-20 में प्रदेश में हुआ था 22.46 करोड़ पौधरोपण
# वर्ष 2020-21 में पौधरोपण का लक्ष्य 25 करोड़
             उप्र राज्य क्षेत्रफल एवं जनसँख्या की दृष्टि से देश में सबसे बड़ा होने के नाते लक्ष्य भी सबसे बड़ा रखता है लेकिन और राज्यों की अपेक्षा पौधरोपण में उप्र हमेशा से बहुत पीछे रह जाता है. ये भारत वन स्थिति रिपोर्ट (आईएफएसआर) – 2019, 16वीं रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि उप्र में करोड़ों पौधरोपण के वावजूद हरित क्षेत्र (वनावरण एवं वृक्षावरण) में बढ़ोत्तरी सिर्फ 0.01 प्रतिशत हुई है. यह रिपोर्ट पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन कार्य करने वाली संस्था भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान देहरादून द्वारा भारतीय दूरसंवेदी उपग्रह रिसोर्स सेट-2 से प्राप्त आंकड़ो के आधार पर की जाती है.  भारत वन स्थिति रिपोर्ट – 2017 में कुल हरित क्षेत्र 9.18 प्रतिशत था जो कि वर्ष 2019 में बढ़ कर 9.19 प्रतिशत हो गया है. यह रिपोर्ट दो वर्ष के अन्तराल में बनायी जाती है. प्रदेश सरकार ने वर्ष 2017-18 में पौधरोपण का लक्ष्य 6.54 करोड़, 2018-19 में पौधरोपण का लक्ष्य 9 करोड़ तथा वर्ष  2019-20 पौधरोपण का लक्ष्य 22.46 करोड़  रखा था. तीन वर्षों में 38 करोड़ पौधरोपण के  वावजूद प्रदेश के हरित क्षेत्र में मात्र 0.01 प्रतिशत ही बढ़ोत्तरी हो सकी है. इस वर्ष योगी सरकार 25 करोड़ पौधों को रोपित कर एक बार फिर गिनीज बुक में नाम दर्ज कराने की कोशिश करेगी.
        
बीते वर्ष वृक्षारोपण महाकुम्भ की अग्नि परीक्षा को प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं विभागाध्यक्ष ने थर्ड पार्टी मॉनिटरिंग कराये जाने का निर्णय लिया था. निर्णय की गंभीरता को देखते हुये प्रदेश के सभी जिलाधिकारी /अध्यक्ष जिला वृक्षारोपण समिति को शासनादेश भी दिया गया था कि वह वृक्षारोपण की थर्ड पार्टी मॉनिटरिंग को आ रही भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान देहरादून टीम का सहयोग करे. लेकिन भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान देहरादून की 27 टीम लगभग 7 माह देरी से 17 फरवरी 2020 को मूल्यांकन एवं निरीक्षण को रवाना हुई.
            उप्र की योगी सरकार ने भारत छोड़ो आन्दोलन की 77वीं वर्षगांठ के अवसर पर वृक्षारोपण महाकुम्भ 2019-20 को गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकोर्ड में दर्ज कराने को 22.46 करोड़ पोंधों को रोपित करने का दृढ़ संकल्प लिया था जिसे तय समय सीमा तक 22,37,46,180 करोड़ पौधे रोपित करने का दावा किया गया था. गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकोर्ड के अधिकारियों ने प्रयागराज प्रशासन को इतने कम समय में 66000 पौधों के वितरण को विश्व रिकॉर्ड मानते हुये गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकोर्ड में दर्ज़ कर प्रयागराज प्रशासन को गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकोर्ड सर्टिफ़िकेट से 9 अगस्त 2019 को  नवाज़ा था लेकिन उप्र में होने वाले वृक्षारोपण महाकुम्भ को गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकोर्ड में दर्ज़ नहीं किया था.  मुख्य मन्त्री योगी आदित्यनाथ ने वृक्षारोपण महाकुम्भ की शुरुआत प्रयागराज से की थी. मालूम हो कि  उत्तर प्रदेश में 24 घन्टे में 5 करोड़ पेड़ 6166 जगह लगाने का गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकोर्ड 2016-17 अखिलेश यादव सरकार के नाम दर्ज़ है.
            उप्र सरकार के मुख्य सचिव ने एक आदेश में वृक्षारोपण महाकुम्भ 19-20 में 22.46 करोड़ पौधों को रोपित करने का दावा किया है जिसमें वन विभाग द्वारा 7,609 स्थलों पर 6.74 करोड़ पौधों तथा अन्य विभागों द्वारा 56,502 ग्राम पंचायतों में 12,24,665 स्थलों पर 15.90 करोड़ पौधे रोपित होना दर्शाया है. उन्होंने इस आदेश में रोपित पौधों को जीवित रखने का निर्देश देते हुये कहा है कि इस वर्ष ग्राम पंचायतों में 02 श्रेणियों में वृक्षारोपण कराया गया है. श्रेणी 01 में ऐसे कृषक या व्यक्ति जिनके स्वं के संसाधनों द्वारा वृक्षारोपण किया गया तथा 02 श्रेणी ऐसे किसान या व्यक्ति हैं जिन्हें उनकी इच्छा की प्रजाति के पौधे वन विभाग द्वारा उपलब्ध करवाया गया, उनका रोपण उनकी भूमि पर ग्राम पंचायत द्वारा करवाया गया.
            प्रधान मुख्य वन संरक्षक और विभागाध्यक्ष उप्र ने 05 अक्टूबर 2019 को प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों /अध्यक्ष जिला वृक्षारोपण समिति उप्र को आदेश दिया है कि वृक्षारोपण महाकुम्भ 2019-20 में कराये गये समस्त वृक्षारोपण का मूल्यांकन एवं निरीक्षण करने को अगले सप्ताह से थर्ड पार्टी मॉनिटरिंग टीम भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान देहरादून से आ रही है. जनपद की जिला वृक्षारोपण समिति मॉनिटरिंग टीम को पूर्ण सहयोग करे जिससे मूल्यांकन एवं निरीक्षण का कार्य ठीक तरह से सम्पादित हो सके. लेकिन भारतीय सर्वेक्षण संस्थान देहरादून की 27 टीम 17 फरवरी 2020 को उप्र के सभी 75 जनपदों को रवाना हो सकी. 
            उत्तर प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक और विभागाध्यक्ष उप्र के  आदेश की जमीनी हक़ीकत जानने को जब भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान देहरादून  के उप-निदेशक प्रकाश लखचौरा से जानकारी माँगी तो उन्होंने बताया कि अपरिहार्य कारणों वश कुछ देरी से उप्र में वृक्षारोपण महाकुम्भ 19-20 के मूल्यांकन को 27 टीम 17 फरवरी 2020 को रवाना हुईं थी. उन्होंने बताया कि संस्थान को यह कार्य एक प्रोजेक्ट के तहत दिया गया था. इस सर्वे में संस्थान को ये पता लगाना था कि कितने क्षेत्रफल में पौधरोपण हुआ था, किस एजेंसी ने कितने पेड़ लगाये थे तथा पौधरोपण का सर्वाइवल कितना है. यह सारी सर्वे रिपोर्ट उप्र सरकार के प्रधान मुख्य वन संरक्षक और विभागाध्यक्ष उप्र को भेज दी गयी है.
            डॉ. राजीव गर्ग प्रधान मुख्य वन संरक्षक और विभागाध्यक्ष उप्र से जब भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान देहरादून द्वारा वृक्षारोपण महाकुम्भ 2019-20 के मूल्यांकन एवं निरीक्षण के परिणाम के बारे में जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान देहरादून ने जो रिपोर्ट दी है उसके अनुसार वृक्षारोपण 2019-20 का सर्वाइवल औषत 75 प्रतिशत से 90 प्रतिशत है तथा जिन 26 एजेंसियों ने वृक्षारोपण किया था उनका औषत 70 प्रतिशत से 95 प्रतिशत रहा है. जब उनसे पूछा कि आईएफएसआर 16वीं रिपोर्ट के अनुसार करोड़ों की संख्या में वृक्षारोपण के बाद भी हरित क्षेत्र में 0.01 प्रतिशत की ही वृद्धी हुई है, तो उन्होंने बताया कि वन क्षेत्र को आंकलन करने की जो हमारे पास तकनीक है वो इतनी समृद्ध नहीं है जो एक से दो वर्ष अन्तराल के पौधों का सही आंकलन कर सके.    

Monday, June 22, 2020

कोरेंटीन को पहुँचे प्रवासी हुनरवाज़ों ने श्रमदान से कायाकल्प कर डाला स्कूल - अनिल सिन्दूर

  
# प्रधानमन्त्री को मिली प्रेरणा हुनरवाज़ों से
            उप्र के जनपद उन्नाव विकास खंड अजगैन ग्राम पंचायत नारायनपुरा प्रवासी कोविड-19 महामारी के दौरान हैदराबाद से पैदल तथा विभिन्न संसाधनों से जब अपने गाँव पहुँचे तो उन्हें कोरेंटीन स्थल प्राथमिक विद्यालय ले जाया गया. जब उन्होंने प्राथमिक विद्यालय की जीर्ण शीर्ण अवस्था देखी तो उन्होंने कोरेंटीन स्थल की व्यवस्था देख रहे अधिकारी से कहा हम पेंटिंग का कार्य जानते हैं यदि हमें संसाधन उपलब्ध करवा दें तो वह इस विद्यालय का कायाकल्प कर देंगे, संसाधन उपलब्ध होते ही उन्होंने विद्यालय को अपने श्रमदान से कायाकल्प कर डाला. हुनरवाज़ों का यह श्रमदान प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के लिए प्रेरणा श्रोत बन गया जिसका जिक्र 20 जून को वीडियो कोंफ्रेंसिंग में उन्होंने किया.


            हैदराबाद से तीन युवक विनोद पुत्र घसीटे, अरुण पुत्र राजेश तथा कमलेश पुत्र लल्लू कोविड -19 महामारी के दौरान घर की याद आयी तो पैदल ही अपने गाँव नारायनपुरा चल दिए. कहीं किसी ट्रक ने 10-20 किमी. को बैठा लिया बैठ गये नहीं तो पैदल ही चलते रहे. रुपए पैसे तथा मोबाईल तिलंगाना के जंगलों से जब गुजरे तभी लूट लिए गये. विनोद ने बताया कि दूसरा लॉकडाउन जब घोषित हुआ उसके दूसरे दिन ही दोनों साथियों के साथ वह पैदल गाँव को रवाना हुये गाँव आते-आते 13 दिन लग गये. गाँव पहुँचते ही 14 दिन कोरेंटीन को प्राथमिक विद्यालय नारायनपुरा रखे गये. जब प्राथमिक विद्यालय की दयनीय दशा देखी तो हम तीनों ने श्रमदान से प्राथमिक विद्यालय की दीवालों को नया रूप देने की ठानी. अपना प्रस्ताव कोरेंटीन स्थल की व्यवस्था देख रहे बीडीओ केएन पाण्डेय को बतायी उन्होंने ग्राम विकास अधिकारी धीरेन्द्र रावत तथा प्रधान राजू यादव को सभी संसाधन जुटाने को कहा. हम लोगों ने पुट्टी से दीवालों के गड्ढे भर कर पूरे विद्यालय की पेंटिंग कर डाली. दीवाल लेखन का कार्य उसके बाद कराया गया.
            सोशल मीडिया पर यह कार्य वीडियो के माध्यम से वायरल हुआ. वायरल वीडियो की भनक प्रधानमंत्री कार्यालय को लगी तो कार्यालय के अधिकारियों ने जिलाधिकारी रवीन्द्र कुमार को सत्यता परखने को कहा. जिलाधिकारी रवीन्द्र कुमार ने आनन् फानन में बीडीओ केएन पाण्डेय से वीडियो तथा फोटो पीएम्ओ कार्यालय भेजने को मांगे. जिलाधिकारी ने कहा कि उन्हें ये अपेक्षा नहीं थी कि श्रमदान के वायरल हुये वीडियो को पीएम्ओ देख रहा है और प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी वीडियो कोंफ्रेंसिंग में हमारे जनपद का जिक्र करेंगे.
            वीडियो कोंफ्रेंसिंग में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने उप्र के जनपद उन्नाव में कोरेंटीन स्थल प्राथमिक विद्यालय नारायनपुरा का जिक्र करते हुये बताया कि उन्हें  पीएम् गरीब कल्याण योजना की प्रेरणा उप्र के जनपद उन्नाव के कोरेंटीन स्थल सरकारी विद्यालय की कायाकल्प करने वाले उन तीन श्रमिकों से मिली जो रंगाई-पुताई और पीओपी के कार्य में पारंगत थे. इन श्रमिकों ने कोरेंटीन के दिनों का उपयोग करते हुये अपने श्रमदान से विद्यालय का कायाकल्प कर दिया. जैसे ही वीडियो कोंफ्रेंसिंग में उन्नाव का जिक्र प्रधानमन्त्री ने किया उन्नाव प्रशासन सकते में आ गया और जिलाधिकारी सहित जिले के आलाधिकारी ग्राम पंचायत नारायनपुरा पहुँच गये. जिलाधिकारी रवीन्द्र ने श्रमिक विनोद से मुलाकात की और उससे कहा गाँव में कुछ मदद चाहिये तो उसने कहा मेरे घर पर विद्युत्  कनेक्शन नहीं है यदि हो सके तो करवा दें. जिलाधिकारी ने तत्काल प्रभाव से विद्युत् कनेक्शन करने की मंजूरी दे दी. मालूम हो कि विनोद  प्रधानमन्त्री आवास योजना, शौचालय तथा उज्ज्वला योजना का लाभ ले रहा है. विनोद की पत्नी रामरती मनरेगा की जॉब कार्ड धारक है. 

Tuesday, March 31, 2020

समाचार पत्रों पर नोवल कोरोना (कोविड - 19) का असर - अरविन्द त्रिपाठी

नोवल कोरोना का असल संक्रमण और अघात समाचार पत्रों पर पड़ा है. त्योहारी अवसरोंपर चालीस-पचास पेज के छपने वाले समाचार - पत्र अब अपनी असल औकात में आ गये हैं.
प्रत्येक समाचार पत्र के प्रत्येक पृष्ठ में समाचार और विज्ञापन की हिस्सेदारी के लिए भारत सरकार के सूचना प्रसारण विभाग और प्रेस काउंसलिंग ऑफ़ इण्डिया के दिशा-निर्देशों को धता बताते हुये इन समूहों के प्रबंधन ने समाचारों को सदैव दोयम प्राथमिकता बनाये रखा. विज्ञापन अधिक आने/पाने की दशा में पृष्ठ संख्या बढ़ा लेना सभी समाचार पत्रों कि अघोषित नीति रही है.
किसी भी भाषा में प्रकाशित होने वाले कम प्रसार संख्या और कम संसाधन वा
ले अख़बार इन बड़े अख़बार समूहों के आगे नतमस्तक रहते हैं और अपने नियत पृष्ठ प्रकाशन पूर्ण करने लायक संसाधन जुटाने में हाई कमर तोड़ दे रहे हैं. इस पूरे खेल में "पाठक" अर्थात "उपभोक्ता" के हित के बारे में उत्पादक अर्थात समाचार समूह और नियंत्रक अर्थात सरकारों ने कभी नहीं सोचा कि पाठक को किस प्रकार की और  कितनी मात्र में सूचना पहुंचनी चाहिए ? ये  सूचना कितनी सच्ची और कितनी मिलावटी हो ? प्रबंधन की विचारधारा और सूचना के सच का अधिकार आपस में कितना तारतम्य बनाये रखे ? यही सब कारण है कि आम पाठक या असल उपभोक्ता का नकारे जाने का दबाव कभी भी उत्पादक वर्ग अर्थात समाचार समूहों पर नहीं बन पाया. आज छोटे से छोटा और बड़े कहलाने समाचार समूह समाचार पत्र प्रकाशन के साथ या उसकी आड़ में विभिन्न दूसरे पूँजी उत्पादन के कार्य ठेके, दलाली, जाल-बट्टे सहित सरकार बनाने - बिगाड़ने तक के खेल में मस्त हैं. फ़र्ज़ी प्रसार संख्या के आधार पर डीएवीपी दरों में वृद्धी कराकर ऊंची दरों पर सरकारी विज्ञापन हड़पने में ये अधिक सफल हैं.
कोरोना संकट के समय कमज़ोर व्यवसायिक गतिविधियों के कारण कमर्शियल और सरकारी विज्ञापन की कमी के दौर में आज सभी समाचार समूहों की हेकड़ी समाप्ति की ओर है.
समाचार प्रकाशन के मूल व्यवसाय से विमुख होकर या उसकी आड़ में सैकड़ों दूसरे लाभ के व्यवसाय करने वाले और समाचार समूह भी न्यूनतम पृष्ठ संख्या में प्रकाशन कर प् रहे हैं. ऐसे हालात में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बढ़कर इन समाचार समूहों पर नकेल कसनी चाहिये कि कितने पृष्ठ हों और विज्ञापन / समाचार प्रकाशन की वास्विक नीति क्या हो? साथ ही यह भी पाठक को सही समाचार जानने वाला हक़ सर्वोपरि रहे.
पाठकों की मानसिक गुलामी अब बीते ज़माने की बात होने लगी है. पाठकों का समाचार जानने की असल जिज्ञासा की यही दुविधा उन्हें सूचना वैकल्पिक श्रोत अर्थात वेब न्यूज साईट और वाट्सएप पर सूचना पाने के लिए आश्रित रहा है. लेकिन कम अनुभवी और भौकलीय पत्रकार की चाहत ने खबरों की गुणबत्ता पर ध्यान ही नहीं दिया जो कि पाठक के हिट में कतई नहीं है. ऐसे हालात में केंद्र सरकार का हंटर ही कारगर साबित होगा/.


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